जन्माष्टमी के पर्व की महिमा और भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य के बारे में जाने

जन्माष्टमी का पर्व भारतवर्ष के महान पर्वों में से एक है | इसकी महिमा अपरम्पार है | यहाँ बहुत से लोग जन्माष्टमी के दिन व्रत रहते है, तो वहीँ बहुत से लोग इस दिन झाँकी सजाते हैं और रात भर उत्सव मनाते हैं |
जन्माष्टमी के दिन इसी भारत में, मथुरा के कंस-कारागार में सर्वलोक महेश्वर, सकल-ईश्वरेश्वर, सर्वशक्तिमान, नित्य निर्गुण-सगुण, सकल अवतारमूल, सर्वमय-सर्वातीत अखिलरसामृतसिन्धु स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण का दिव्य जन्म हुआ था । नित्य अजन्मा का धरती पर यह जन्म सकल ब्रह्माण्ड की बड़ी ही विलक्षण घटना है ।
इस दिव्य जन्म को जानने वाले पुरूष जन्म बन्धन से मुक्त हो जाते हैं और मृत्योपरांत प्रवेश करते हैं परमेश्वर के अविनाशी धाम में । जिस मंगलमय क्षण में इन परमानन्दघन का प्राकट्य हुआ, उस समय मध्यरात्रि थी, चारों ओर अंधकार का साम्राज्य था, परंतु अकस्मात् सारी प्रकृति उल्लास से भरकर उत्सवमयी बन गयी ।
महाभाग्यवान् श्रीवसुदेव जी को अनन्त सूर्य-चन्द्र के सदृश प्रचण्ड शीतल प्रकाश दिखलायी पड़ा और उसी प्रकाश में दिखलायी दिया एक अदभुत बालक । श्यामसुन्दर, चतुर्भुज, शंख-गदा-चक्र और पद्म से सुशोभित, कमल के समान सुकोमल और विशाल नेत्र, वक्षःस्थल पर श्रीवत्स तथा भृगुलता के चिन्ह, गले में कौस्तुभमणि, मस्तक पर महान् वैदूर्य-रत्न-खचित चमकता हुआ किरीट, कानों में झलमलाते हुए कुण्डल, जिनकी प्रभा अरूणाभ कपोलों पर पड़ रही है । सुन्दर काले घुँघराले केश, भुजाओं में बाजूबंद और हाथों में कंगन, कटिदेश में देदीप्यमान करधनी, सब प्रकार से सुशोभित अंग-अंग से सौन्दर्य की रसधारा बह रही है ।
कैसा अदभुत बालक ! मानव-बालक माता के उदर से निकलते हैं, तब उनकी आँखें मुँदी होती है । दाई पोंछ-पोंछकर उन्हें खोलती है, पर इनके तो आकर्ण विशाल, निर्मल, पद्यसदृश सुन्दर नेत्र हैं । सम्भव है, कहीं अधिक भुजावाला बालक भी जन्म जाय, परंतु इनके तो चारों हाथ दिव्य आयुधों से सुशोभित हैं ।
साधारणतया सांसारिक अलंकरों से बालकों की शोभा बढ़ा करती है, किंतु यहाँ तो ऐसा शोभामय बालक है कि इसके दिव्य देह से संलग्न होकर अंलकारों को ही शोभा प्राप्त हो रही है । ऐसा अपूर्व बालक कभी किसी ने कहीं नहीं देखा और ना ही सुना होगा । यही दिव्य जन्म है ।
वास्तव में भगवान् सदा ही जन्म और मरण से रहित हैं । वह काल से परे हैं स्वयं महाकाल हैं | जन्म और मृत्यु प्राकृत देह में ही होते हैं । भगवान् का मंगल विग्रह अप्राकृत ही नहीं, परम दिव्य है । न वह कर्मजनित हैं और ना ही पञ्चभौतिक ।
वह नित्य सच्चिदानन्दमय ‘भगवददेह’ शाश्वत, और स्वरूपमय है । उनके आविर्भावका नाम ‘जन्म’ है और उनके इस लोक से अदृश्य हो जाने का नाम ‘देहत्याग’ है । भगवान कृष्ण की दिव्य लीलाओं का वर्णन श्रीमद्भागवत में हुआ है |
एक बार पार्थ ने उनसे सीधी तरह से पूछ ही लिया कि “श्री कृष्ण ! आप तो वसुदेव के पुत्र हैं, और आप बताते हैं कि आपने पहले विवस्वान को उपदेश दिया था | लेकिन उस समय भला आप कहाँ थे ?” इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने अपने स्वरुप का परिचय दे ही डाला | वे अपने आप को छिपा न सके | अपना स्वभाव भी उनको बताना ही पड़ा |