fbpx

जब प्रोड्यूसर ‘खराब ऐक्टिंग’ का बहाना बनाकर इरफ़ान के पैसे खा गया!

Editor Editor
Editor Editor
5 Min Read

NSD से निकलने के बाद मेरे कुछ बुरे एक्स्पीरियेंस रहे थे. एक बार प्रोड्यूसर ने आधे ही पैसे दिए, बोला कि खराब एक्टिंग की है तुमने और क्योंकि एक्टिंग को लेकर मैं इतना कॉन्शस था कि कब सही करूंगा, तारीफ मिलती थी लेकिन मुझे पता था कि मैं नहीं कर पा रहा हूं, ऊपर से कर रहा हूं, मेरे अंदर नहीं जा रहा है यह. मेरा पूरा शरीर वह नहीं बोल रहा है जो मैं बोल रहा हूं मुंह से, ऐसे दौर में किसी का यह कहना कि तुमने खराब एक्टिंग की है इसलिए पैसा कम दे रहा हूं – मैं बहुत रोया था घर आकर.

इरफ़ान खान दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से पढ़े. वहां से ऐक्टिंग सीखी. एजेंडा क्लियर था, उन्हें फिल्मों में काम करना था. NSD से पास होने के कुछ समय बाद मुंबई आ गए. लगा था कि चीज़ें आसान हो जाएंगी, पर ऐसा हुआ नहीं. ऊपर आपने जो घटना पढ़ी, वो इरफ़ान के बुरे अनुभवों में से एक रहा. उन्होंने अजय ब्रह्मात्मज के साथ बातचीत में ये किस्सा साझा किया था. इरफ़ान के साथ हुई ऐसी ही बातचीत और संस्मरणों को मिलाकर अजय जी ने एक किताब की शक्ल दी. उसका नाम है ‘और कुछ पन्ने कोरे रह गए: इरफ़ान’.

अजय ब्रह्मात्मज एक वरिष्ठ फिल्म पत्रकार हैं. अखबारों में सिनेमा पर लिखे उनके लेख निरंतर छपते रहे हैं. उन्होंने इरफ़ान खान पर जो किताब लिखी वो उनकी जीवनी नहीं, बल्कि उनके इंटरव्यूज और संस्मरणों का संग्रह है. इन्हीं इंटरव्यूज़ के बीच इरफ़ान की ज़िंदगी के कुछ किस्से मिलते हैं, ऐसे किस्से जिनके बारे में ज़्यादा लोग नहीं जानते. हम अजय जी से परमिशन लेकर आपको किताब के कुछ हिस्से पढ़ा रहे हैं.

साल 2001 में एक ब्रिटिश फिल्म आई थी, ‘द वॉरियर’. फिल्म में इरफ़ान ने एक योद्धा का किरदार निभाया था. आसिफ कपाड़िया के निर्देशन में बनी ‘द वॉरियर’ इरफ़ान के करियर के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुई थी. वो खुद इस फिल्म को एक तोहफा मानते थे. ऐसे फिल्म जो वो नहीं करने वाले थे. फिर ये फिल्म उनके लिए कैसे मुमकिन हो पाई, उसका किस्सा भी उन्होंने किताब में साझा किया था:

‘वॉरियर’ मेरे रास्ते में आ गई. सच कहूं तो वह फिल्म मुझे परोस कर दी गई थी. मैं ऑडिशन के लिए जाने को तैयार नहीं था. तिग्मांशु धूलिया ने फोर्स किया. उसने कहा कि तू जाकर खाली मिल ले. मैं गया. कमरे में घुसा और कुछ हो गया. एहसास हुआ कि यह कुछ स्पेशल है. निर्देशक आसिफ कपाड़िया के साथ अपनी पसंद की फिल्मों की बातें चल रही थीं. इस बातचीत में ही तारतम्य बैठ गया. उसने मुझे फिल्म का एक सीन पढ़ने के लिए दिया. वह मुझे झकझोर गया. फिर प्रोड्यूसर से बात हुई. मैंने इतना ही कहा था कि इस फिल्म में मैजिक है.

‘द वॉरियर’ इरफ़ान के लिए एक जादुई फिल्म थी. हालांकि उस किरदार को उन्होंने इतना आत्मसात कर लिया कि मुश्किल खड़ी हो गई. बाहर निकलने में दिक्कत हुई. इसको लेकर उन्होंने बताया:

‘वॉरियर’ करने के बाद पहली बार मुझे ऐसा तजुर्बा हुआ कि वह दुनिया, वह कहानी मुझसे छुड़ाए नहीं छूट रही है. एक बार तो आसिफ को फोन करते-करते मैं बेतहाशा रो पड़ा. बच्चों की तरह बिलख-बिलख कर रो पड़ा, पता नहीं क्यों. क्योंकि मुझे लग रहा था कि वो… कहां गया वो…

इरफ़ान के काम से कोई अछूता नहीं रहा. किसी-न-किसी तरह से हम उनके काम से प्रभावित हुए हैं. एक शख्स ने इरफ़ान से आकर कहा था कि आपकी फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ ने मेरी ज़िंदगी बदल दी. वो शख्स आया और इतनी बात कहकर चला गया. न हाथ मिलाया, न अपना नाम बताया. इरफ़ान ने किताब में एक ऐसा ही वाकया साझा किया:

एक बार एक नया एक्टर मिला. वह मेरे पास आया और मुझसे चिपक कर रोने लगा. मैं हतप्रभ. समझ में नहीं आया. फिर मुझे अपना वाकया याद आया. NSD में मेरा एडमिशन हो गया था. ‘संध्या छाया’ नाटक मैं देखने गया था. सुरेखा सीकरी और मनोहर सिंह उसमें अभिनय कर रहे थे. सुरेखा ने मुझे इतना अभिभूत किया कि नाटक खत्म होने के बाद मैं ग्रीन रूम में चला गया. मैंने उनके पांव पकड़े और रोने लगा. कोई इतना अच्छा अभिनय कैसे कर सकता है? मुझे अपना वह इमोशन याद आ गया.

Share This Article