देश के सबसे ‘रंगीन मिजाज’ राजा की कहानी: पटियाला पैग से लेकर 365 रानियों तक के लिए मशहूर रहे

देश के सबसे ‘रंगीन मिजाज’ राजा की कहानी: पटियाला पैग से लेकर 365 रानियों तक के लिए मशहूर रहे

भारत राजा महाराजाओं की धरती रही है और राजा होने का तो मतलब ही होता है राजसी ठाठ बाठ से जीना. राजसी अंदाज में जीने की भी एक हद होती है. लेकिन आज जिस राजा की कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं उसके लिए कोई भी हद नहीं थी. हर राजा जहां अपनी प्रजा, अपने राज याअपने साम्राज्य को बढ़ाने के बारे में सोचता हैवहीं इस राजा ने उम्र भर सिर्फ खुद के लिए सोचा.

ये राजा थे पटियाला रियासत के महाराजा भूपिंदर सिंह. कहते हैं इनकी रंगीन मिजाजी पूरी दुनिया में मशहूर थी. महाराजा भूपिंदर सिंह का जन्म 12 अक्टूबर 1891 को हुआ था. 8 नवंबर 1900 को जब वह राजगद्दी पर बैठे तो उनकी उम्र केवल 9 साल थी. 18 साल के होने के बाद उन्होंने एक राजा के रूप में कार्यभार संभालना शुरू किया. इस तरह उन्होंने 38 साल तक पटियाला के तख्त पर राज किया.

रंगीन मिजाजी के लिए थे मशहूर
दीवान जरमनी दास नामक लेखक ने अपनी किताब ‘महाराजा’ में महाराजा भूपिंदर सिंह की रंगीन मिजाजी और उनकी अय्याशी का जिक्र करते हुए लिखा है कि भूपिंदर सिं ने पटियाला में लीला-भवन बनवाया था जिसे रंगरलियों का महल भी कहा जाता था. इस महल में किसी को भी कपड़े पहन कर जाने की इजाजत नहीं होती थी. कपड़े उतारने के बाद ही यहां एंट्री मिलती थी.

दीवान जरमनी दास की किताब महाराज के मुताबिक महल में एक खास कमरा था जिसे प्रेम मंदिर कहा जाता था. इस प्रेम मंदिर में महाराजा के अलावा किसी और की एंट्री नहीं होती थी. इस कक्ष में उनकी अनुमति के साथ ही कोई प्रवेश कर सकता था. किताब में बताया गया है कि इस कमरे में राजा के भोग-विलास का पूरा इंतजाम रहता था.

उनके महल के अंदर एक बड़ा सा तालाब भी था जो उस समय के स्विमिंग पूल काम करता था. कहते हैं इस तालाब में एक साथ लगभग 150 लोगों के नहाने की व्यवस्था थी. इसी तालाब के किनारे अक्सर राज्य पार्टियां करते थे. उनकी पार्टियों में उनकी प्रेमिकाओं और अन्य खास तथा करीबी लोगों की एंट्री ही हो सकती थी.

महाराजा की 365 रानियां थीं
इतिहासकारों का महाराजा भूपिंदर सिंह के बारे में कहना है कि उनकी कुल 365 रानियां थीं. इन रानियों के लिए पटियाला में भव्य महल बनाए गए थे. इन सबही की स्वास्थ्य जांच के लिए हर वक्त चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम भी मौजूद रहती थी. दीवान जरमनी दास की किताब में बताया गया है कि उनकी 365 रानियों में मुख्य रूप से 10 पत्नियों थीं जिनसे उनके 83 बच्चे हुए थे. इनमें से 20 बच्चों की मृत्यु हो गई तथा 53 बच्चे ही जिंदा रह पाए थे.

Related articles