करण जौहर की लाइगर का हश्र बॉलीवुड फिल्मों जैसा, बॉक्स ऑफिस का संकेत यही है

करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी ‘लाइगर’ हिंदी बेल्ट में ‘बायकॉट बॉलीवुड’ ट्रेंड का नया ताजा शिकार है. फिल्म रिलीज हो चुकी है. पहले दिन विजय देवरकोंडा स्टारर फिल्म की कमाई के रुझान भी आने लगे हैं. तमाम प्रतिष्ठित ट्रेड रिपोर्ट्स में कलेक्शन के जो आंकड़े दिख रहे हैं वह बताने के लिए काफी हैं कि लाइगर के हिंदी वर्जन का बॉक्स ऑफिस औसत ही रहने वाला है. तेलुगु के अलावा हिंदी समेत दूसरे बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को लेकर बहुत ज्यादा हाइप नहीं है. पहले दिन करीब 25 करोड़ कमाई का अनुमान है. इसमें हिंदी वर्जन का कंट्रीब्यूशन मात्र 2 से 5 करोड़ के बीच हो सकता है.
हिंदी टेरिटरी में लाइगर की अकुपेंसी देखें तो पहले दिन 5 करोड़ भी कमाना करण जौहर की फिल्म के लिए लगभग पहाड़ फतह करने जैसा है. यह स्थिति तब है जब दिल्ली और मुंबई के बड़े महानगरों में पीवीआर जैसे मल्टीप्लेक्स ने फिल्म के टिकटों की कीमत 112 से 1400 रुपये के रेंज में ही रखी है. लाइगर भले ही दक्षिण के सिनेमा उद्योग से निकली हो, मगर यह हिंदी बेल्ट में पुष्पा, आरआरआर और केजीएफ 2 जैसी कमाई दोहराते तो नहीं दिख रही. पुष्पा ने कोविड से जूझ रहे सिनेमाघरों की खस्ता हालत के बावजूद 100 करोड़ से ज्यादा कमा लिए थे. केजीएफ 2 ने पहले दिन 53.95 करोड़ की ओपनिंग हासिल की थी. और आरआरआर ने भी 20 करोड़ से ज्यादा की शुरुआत पाई थी.
हिंदी में लाइगर की कमाई होगी भी तो कैसे?
तेलुगु से अलग क्षेत्रों में लाइगर की अकुपेंसी ही नहीं है. Sacnilk के मुताबिक़ आन्ध्र और तेलंगाना के तमाम क्षेत्रों में लाइगर की अकुपेंसी 50 से 92 प्रतिशत तक है. वहीं हिंदी के दो सबसे बड़े बिजनेस एरिया मुंबई और दिल्ली में यह महज 8 से 11 प्रतिशत है. यह साफ़ दिख रहा कि हिंदी दर्शकों के रुझान के हिसाब से ही तमाम मल्टीप्लेक्स लाइगर की शोकेसिंग कर रहे हैं. मल्टीप्लेक्स ने हिंदी की बजाए अपनी टेरिटरी में रह रहे तेलुगु दर्शकों के आने का भरोसा ज्यादा है. शायद यही वजह है कि सिनेमाघर हिंदी वर्जन की तुलना में तेलुगु वर्जन को ज्यादा स्पेस देते नजर आ रहे हैं.
उदाहरण के लिए दिल्ली एनसीआर में ग्रेटर नोएडा में पीवीआर ने लाइगर हिंदी को सिर्फ एक स्क्रीन दिया है जबकि तेलुगु के स्क्रीन्स की संख्या चार है. इसी तरह इसी तरह पीवीआर में भी मुंबई के एक इलाके में पहले दिन तेलुगु वर्जन पांच स्क्रीन्स पर है जबकि हिंदी वर्जन को महज एक स्क्रीन पर दिखाया जा रहा है. काफी हद तक यह समझा जा सकता है बायकॉट बॉलीवुड कैम्पेन और पिछली तमाम फिल्मों के हश्र से मल्टीप्लेक्स को शायद एक लर्निंग मिली है और वे इसी पर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं. लर्निंग यह कि बॉलीवुड फ़िल्में खासकर जिनकी खिलाफत हो रही है उनसे जुड़े प्रोजेक्ट को नहीं दिखाने का. अब सवाल है कि लाइगर के फ्लॉप होने से क्या यह समझा जाए कि हिंदी दर्शकों के पास पैसा नहीं है या वे दक्षिण की वही फ़िल्में देख रहे हैं जिनका कंटेंट बढ़िया हो. बाकी दक्षिण की भी तमाम फ़िल्में पुष्पा, आरआरआर और केजीएफ 2 जैसी धुआंधार कमाई करने में असफल हुई हैं. आगे बढ़ने से पहले यह भी जान लीजिए कि इसी पीवीआर ने अकेले केजीएफ 2 को 100 करोड़ से ज्यादा बिजनेस दिया था.
बॉलीवुड और दक्षिण की फ्लॉप फिल्मों में एक ट्रेंड है, अनुराग कश्यप के सवाल का जवाब भी
अनुराग कश्यप ने भी पिछले दिनों बायकॉट बॉलीवुड को भोथरा बताने के लिए दर्शकों की जेब में पैसे नहीं होने और खराब कंटेंट का तर्क दिया था. लेकिन यह उनका निजी विश्लेषण है. राधेश्याम से लेकर किच्चा सुदीप की विक्रांत रोना या साउथ की वो फ़िल्में जो इस साल अब तक रिलीज हुई हैं और बहुत उल्लेखनीय कमाई नहीं कर पाई हैं- उनके उदाहरणों से आसानी से समझा जा सकता है. प्रभास की राधेश्याम, द कश्मीर फाइल्स के साथ रिलीज हुई थी. दोनों फिल्मों के कंटेंट से समझा जा सकता है कि व्यापक दर्शक किस फिल्म को देखने पहुंचा था. द कश्मीर फाइल्स के तूफ़ान में राधेश्याम ख़त्म हो गई थी.
विक्रांत रोना को सलमान ने प्रजेंट किया था. हिंदी पट्टी में जोरशोर से प्रचार प्रसार भी हुआ. लेकिन रिलीज से कुछ हफ्ते पहले हिंदी को लेकर किच्चा सुदीप का बयान फिल्म के खिलाफ गया. जबकि उससे बहुत पहले अल्लू अर्जुन की पुष्पा द राइज आनन फानन में रिलीज हुई थी, लेकिन दर्शकों ने उसे विशेष प्यार दिया. कंटेंट के अलावा भी एक वजह बॉलीवुड की फिल्म 83 को सबक सिखाना भी था. इस बीच दक्षिण के कुछ निर्माताओं को लगा कि वे दर्शकों के विरोध को भुनाने के लिए अपनी डब फ़िल्में सफल करवा लेंगे. मगर सबकी सब खारिज की गईं और इसमें एक ट्रेंड है. वो चाहे किच्चा सुदीप हों या कमल हासन, हिंदी के दर्शक भेदभावपूर्ण राजनीतिक पक्षधरता दिखाने वाले कलाकारों की फिल्म खारिज करते दिख रहे हैं.