तीसरी पास दुकान में बर्तन साफ करने वाले पद्मश्री सम्मानित शख़्स पर कई छात्रों ने की है पीएचडी

कविता लिखने का जज्बा हर किसी मे नही आता। यह उच्च शिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग का काम माना जाता है। मीडिया से मिली जानकारी के मुताबिक, नाग ने तीसरे कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। 66 साल के हलधर नाग कोशली भाषा के कवि हैं। यह पश्चिमी ओडिशा में बोली जाने वाली भाषा है।
केवल दूसरी कक्षा तक पढ़े हलधर (Poet Haldhar Nag kosli) कवि सम्मेलनों में जब अपनी कविताएं सुनाते हैं, तो दर्शक एकाग्रता से सुनते हैं। उन्हें पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में भी कविताएं सुनाने के लिए इनवाइट किया जाता रहा है। नाग ने कम से कम 20 काव्य और कई कविताओं की रचना की है। उनकी कविताओं का पहला संग्रह ग्रंथाबलि-1 कटक के फ्रेंड्स पब्लिशर ने प्रकाशित किया था।
ओडिशा की संभलपुर यूनिवर्सिटी अब ग्रंथाबलि-2 लेकर आ रही है। यह यूनिवर्सिटी के सिलेबस का पार्ट होगा। उन्हें ओडिशा साहित्य अकादमी की ओर से भी पुरस्कृत किया जा चुका है। हलधर ने कभी किसी भी तरह का जूता या चप्पल नहीं पहना है। वे बस एक धोती और बनियान पहनते हैं। वो कहते हैं कि इन कपड़ो में वो अच्छा और खुला अनुभव करते हैं।
महान कवि, गीतकार और फिल्मकार गुलजार ने एक किताब लिखी है, जिसका नाम है ‘ए पोयम ए डे’ A Poem A Day किताब में भारतीय कविताओं का कलेक्शन है। अपनी नई पुस्तक में गुलजार ने कोसली के कवि पद्मश्री हलधर नाग की कविता को अपने पहले पृष्ठ पर स्थान देकर उनका सम्मान और बढ़ा दिया।
हलधर का जन्म 1950 में ओडिशा के बरगढ़ में एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वे 10 वर्ष के थे तभी उनके पिता गुजर गए थे तब से हलधर का संघर्ष शुरू हो गया। तब उन्हें मजबूरी में तीसरी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। घर की विकट परिस्थिति के चलते उन्हें मिठाई की दुकान में बर्तन धोने पड़े।
दो साल के बाद गाँव के सरपंच ने हलधर को पास ही के एक स्कूल में खाना पकाने के लिए नियुक्त कर लिया जहां उन्होंने 16 वर्ष तक काम किया। जब उन्हें लगा कि उनके गाँव में बहुत सारे विद्यालय खुल रहे हैं तो उन्होंने एक बैंक से सम्पर्क किया और स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की एक छोटी सी दुकान शुरू करने के लिए 1000 रुपये का उधर लिये।