जब सपनों के शहर मुंबई को दहेज में दे दिया गया; ‘बोम बहिया’ से ‘मुंबई’ बनने तक की दिलचस्प कहानी

मुंबई वो शहर जहां कई युवा अपने सपनों की उड़ान भरने आते हैं. इसकी रफ़्तार के साथ चलना आसान नहीं. एक ऐसा शहर जहां हर कोई अपनी पहचान बनाने की भाग-दौड़ में सरपट दौड़ता रहता है. ये शहर कई नाम से जाना गया – कभी बोमबहिया तो कभी बॉम्बे, कभी बम्बई तो कभी मुंबई. यहां कई राजाओं ने अपना शासन चलाया. इसका इतिहास कई संघर्षों और कहानियों से भरा पड़ा है. मुंबई के बारे में यहां तक कहा जाता है कि इसेकभीदहेज में दे दिया गया था. तो चलिए बोम बहिया से बनी मुंबई के दिलचस्प सफ़र से रूबरू होते हैं:
जब हुआ पुर्तगालियों के अधीन
मुंबई सात द्वीपों से बना एक शहर है. इन द्वीपों पर छोटे- छोटे गांव हुआ करते थे. जहां मछुवारे रहा करते थे. जो इसके मूल निवासी माने जाते हैं. मुंबई में मिले प्राचीन अवशेषों से यह साबित होता है कि मुंबई द्वीप समूह पाषाण युग से बसा हुआ है. यहां 250 ई.पू. में भी एक छोटी आबादी रहती थी. तीसरी शताब्दी ई.पू. में मुंबई पर मौर्य साम्राज्य के महान शासक सम्राट अशोक का कब्ज़ा हो गया. उन्होंने यहां शासन किया.
इतिहासकारों के अनुसार यहाँ मौजूद बालकेश्वर मंदिर और एलिफेंटा की गुफाएं भी अति प्राचीन हैं. वहीं लगभग 1200 ई. के आस-पास इस द्वीप पर माहिम बस्ती की स्थापना हुई. जिसे अतीत में महिकावती के नाम से जाना जाता था. 1343 ई. के करीब मुंबई पर गुजरात के राजाओं ने शासन करना शुरू कर दिया.
फिर भारत में डच के साथ-साथ पुर्तगालियों का आगमन हुआ. व्यापार की दृष्टि से बम्बई एक बेहतरीन स्थान था. 1507 में पुर्तगालियों ने यहां आक्रमण किया मगर हथियाने में असफल रहे. पुर्तगालियों के अलावा मुग़ल बादशाह हुमायूं की भी नज़र बम्बई पर पड़ चुकी थी.
यह बात तब की है जब यहां गुजरात के शासक बहादुर शाह का शासन हुआ करता था. इस बात से वे बहुत ही चिंतित थे. इसीलिए उन्होंने 1534 में पुर्तगालियों के साथ संधि कर ली. अब बम्बई पर पुर्तगालियों ने व्यापार को बढ़ावा देना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे यहां की निर्भरता पुर्तगालियों के नियंत्रण में आ चुकी थी. बम्बई अब पुर्तगालियों के अधीन हो चुकी थी.
जब बम्बई को दहेज में दे दिया गया
पुर्तगालियों ने यहां व्यापार की दृष्टि से एक कारखाना खोला. यहां रेशम, कपास, तम्बाकू, चावल, और मलमल का व्यापार बड़े पैमाने पर होने लगा. उन्होंने इसे बोम बहिया कहा, जिसका अर्थ था एक ‘अच्छी खाड़ी.’ बाद में अंग्रेजों द्वारा इसे बॉम्बे कहा गया. और इसी नाम से मशहूर भी हुआ.
बहरहाल, ब्रिटिश साम्राज्य की भी नज़र इस पर थी. व्यापार की दृष्टि से बेहतर जगह थी. वे यहां बड़े पैमाने पर व्यापार करना चाहते थे. अंग्रेजों और पुर्तगालियों के बीच कई बार छिटपुट घटनाएं भी हुईं. ऐसे में पुर्तगालियों ने सुरक्षा की दृष्टि से यहां एक बड़ा गोदाम व किला बनवाया. लोगों को रोज़गार देने के साथ- साथ रहने के लिए जगह भी दी गई.
लेकिन अंग्रेजों ने बम्बई को अपने नियंत्रण में लेने के लिए बहुत ही जद्दोजहद की. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ‘सूरत परिषद’ ने सन 1652 में बम्बई खरीदने का प्रस्ताव भी रखा. जिनमें उन्हें विफलता मिली.