बचपन में बैलगाड़ी हांकने के बाद भारत की सबसे सफ़ल एयरलाइन चलाने वाले ‘कैप्टेन’ की कहानी

बचपन में बैलगाड़ी हांकने के बाद भारत की सबसे सफ़ल एयरलाइन चलाने वाले ‘कैप्टेन’ की कहानी

बैलगाड़ी हांकने वाला एक व्यक्ति अपने जीवन में कहां तक पहुंच सकता है? वो अच्छा किसान हो सकता है, शायद व्यापारी भी बन जाए पर क्या कोई उम्मीद कर सकता है कि बैलगाड़ी हांकने वाला साधारण सा लड़का एक दिन देश की सबसे सस्ती एयरलाइंस का मालिक भी बनेगा? असल में हम बैलगाड़ी के बहाने कैप्टन गोपीनाथन को याद कर रहे हैं.

ये वो शख्स है जिन्होंने देश के आम से आम आदमी के लिए हवाई सफर को सस्ता बनाया. लेकिन उनकी इस सफलता का सफर इतना आसान भी नहीं था.

किसान का बेटा बना सिपाही
कैप्टन गोपीनाथ वो शख़्स है, जिसने आम आदमी के हवाई सपनों को पूरा करने में उसकी मदद की. इस अहमियत को वही शख़्स समझ सकता है जो खु़द सपने देखता हो, जो जानता हो कि आम के लिए सपने कितने खास होते हैं.

गोरूर रामास्वामी अयंगर गोपीनाथ का जन्म साल 1951 में कर्नाटक के गोरूर के एक छोटे से गांव में हुआ था. परिवार में 8 भाई बहन थे. ऐसे में हर बच्चे की परवरिश पर बराबर ध्यान देना और जरूरतों का पूरा हो जाना मुश्किल ही था. उनके पिता एक ​किसान, स्कूल शिक्षक और कन्नड़ उपन्यासकार थे. इसलिए गोपीनाथ की शुरूआती पढ़ाई घर पर ही हुई. इसके बाद 5वीं क्लास में पहली बार गोपीनाथ एक कन्नड़ स्कूल पहुंचे.

पढ़ाई के साथ वे अपने पिता के काम में उनकी मदद भी करते थे. गोपीनाथ ने पिता को आर्थिक मदद देने के लिए बचपन में बैलगाड़ी भी चलाई. वो कहते हैं ना किसान के घर या तो किसान पैदा होता है या फिर सिपाही. गोपीनाथ ने किसानी तो कर ली थी, अब बारी थी सिपाही बनने की. उन्होंने साल 1962 में बीजापुर स्थित सैनिक स्कूल में दाखिला लिया. इसके बाद राष्ट्रीय रक्षा अकादमी परीक्षा पास की.

गोपीनाथ ने भारतीय सेना में 8 वर्षों तक अपनी सेवाएं दीं और उन्होंने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में भी हिस्सा लिया. केवल 28 साल की उम्र में ही सेना से रिटायर हो गए.

इसके बाद शुरू हुआ असली संघर्ष. नौकरी छोड़ चुके थे पर परिवार चलाने की आर्थिक जिम्मेदारी तो थी ही, साथ ही सपने थे..जो उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ते थे. गोपीनाथ ने डेयरी फार्मिंग, रेशम उत्पादन, पोल्ट्री फार्मिंग, होटल, एनफील्ड बाइक डील, स्टॉकब्रोकर जैसी कई फील्ड में हाथ आजमाया पर कहीं भी खास सफलता नहीं मिली.

गोपीनाथ ने अपनी किताब में एक जगह जिक्र किया है कि वे साल 2000 में ​परिवार के साथ अमेरिका के फीनिक्स में हॉलीडे पर थे. इसी दौरान बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे और उनके सिरे की उपर से हवाई जहाज़ गुज़रा. कुछ ही देर में एक और हवाई जहाज ओर फिर घंटे भर में 4—5 हवाई जहाज गुजरे. यह उनके लिए आश्चर्य से भरा था क्योंकि उन दिनों भारत में हवाई सेवाएं इतनी सुदृढ नहीं थीं.

फीनिक्स में उन्होंने एक स्थानीय एयरपोर्ट के बारे में पता किया, जो अमेरिका के टॉप एयरपोर्ट में शामिल भी नहीं था फिर भी वहां से एक हज़ार उड़ानें चलती थीं और यह हर दिन क़रीब एक लाख यात्रियों को सेवाएं देता था. अगर भारत के लिहाज से देखा जाए तो उस वक्त भारत के 40 एयरपोर्ट मिलकर भी इतनी उड़ानें नही दे पाते थे.

उस दौर में अमेरिका में एक दिन में 40,000 कमर्शियल उड़ानें चलती जबकि भारत में केवल 420.

सोच ने दिया देक्कन एयर को जन्म
गोपीनाथ को आइडिया आया कि अगर बसों और ट्रेनों में चलने वाले तीन करोड़ लोगों में से सिर्फ 5 फीसदी लोग हवाई जहाज़ों से सफर करने लगें तो विमानन बिज़नेस को साल में 53 करोड़ उपभोक्ता मिलेंगे. गोपानाथ ने इस हिसाब को ऐसे समझा कि अगर 53 करोड़ लोग हैं यानि 20 करोड़ मिडल क्लास लोग हर साल कम से कम 2 बार हवाई सफर करेंगे.

बस इसी ख्याल ने उन्हें एविएशन फील्ड में उतार दिया. जो सबसे मुश्किल काम था वो था पैसों का इंतजाम करना. गोपीनाथ की प​त्नी ने उन्हें अपनी सारी सेविंग्स दे दीं, दोस्तों ने एफडी से पैसा निकालकर दिया और ​परिवार के पास जो था वो सब उन्हें दे दिया.

Related articles