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जबर एक्टर जो फ़िल्मी करियर, अच्छी लाइफ़ छोड़ ऋषिकेश के ढाबे पर अंडे बनाने लगा था

Editor Editor
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चाहे वो “ऑफ़िस ऑफ़िस” के शुक्ला जी हों, “मसान” के विद्याधर पाठक हों या फिर “दम लगा के हईशा” के चंद्रभान तिवारी. संजय मिश्रा को हमने जिस भी किरदार में स्क्रीन पर देखा वो हमारे दिल में घर कर गए.

कुछ ही ऐसे अभिनेता होते हैं जिनसे हम ख़ुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, लगता है कि ये तो अपने घर के ही हैं, संजय मिश्रा भी उन्हीं चुनींदा कलाकारों में से एक हैं. उन्होंने हमें अगर “कड़वी हवा” के ज़रिए रुलाया तो “धमाल” के ज़रिए हंसाया भी. संजय मिश्रा की ज़िन्दगी आसान नहीं थी.

एक वक़्त ऐसा आया जब संजय मिश्रा को फ़िल्मी करियर छोड़कर ऋषिकेश जाकर 150 रुपये में एक ढाबे पर काम करना पड़ा.

“मेरे पेट में बहुत दर्द उठा और मुझे अस्पताल में भर्ती किया गया. मेरे पेट से 15 लीटर पस निकाला गया. शूट्स के दौरान कुछ भी खा लेते थे तो उसका पेट पर बुरा असर पड़ा. मेरे पिता जी भी चिंता में पड़ गए कि मैं शूट नहीं कर पा रहा था, फ़िल्ममेकिंग में बहुत पैसे लगते हैं. वो मुझे ठीक होने में मदद कर रहे थे, लंबी सैर पर ले जाते थे.”, संजय मिश्रा के शब्दों में.

संजय मिश्रा के ठीक होने के 15 दिन बाद ही उनके पिता, शंभुनाथ मिश्रा का देहांत हो गया.
“मैं टूट गया. मैं मुंबई नहीं जा सकता था, मैं अकेला रहना चाहता था इसलिए मैं ऋषिकेश चला गया और एक ढाबे पर काम करने लगा. कस्टमर्स मुझे देखते और पूछते गोलमाल में आप थे न. वो फिर फ़ोटो खिंचवाना चाहते. आख़िर में सरदार ने पूछा मैं कौन हूं. किसी ने उसे बता दिया था कि मैं एक्टर हूं.”, संजय मिश्रा ने बता

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NSD ग्रैजुएट हैं संजय मिश्रा
संजय मिश्रा भी NSD के प्रोडक्ट हैं. इरफ़ान ख़ान अपने आख़िरी साल में थे जब उनकी एक्टिंग देखकर संजय मिश्रा बेहद प्रभावित हुए. तिगमांग्शु धुलिया ने मिश्रा को एक शो ऑफ़र किया.

1991-1999 के बीच मिश्रा ने डायरेक्शन, कैमरावर्क, लाइटिंग, फ़ोटोग्राफ़ी सब कुछ किया और सिर्फ़ वड़ा पाव खाकर पेट भरा.

संजय मिश्रा का जीवन आसान नहीं रहा. ज़मीन से जुड़े रहना क्या होत है ये मिश्रा जी से सीख सकते हैं.

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