सिर्फ पांच सेकंड में कुछ ऐसा हुआ है, जिससे पूरी दुनिया का ऊर्जा संकट खत्म हो सकता है

सौ साल की कड़ी मेहनत के बाद दुनिया के कुछ वैज्ञानिकों को मिले सिर्फ 5 सेकंड. इन पांच सेकंड में वो जो हासिल कर पाए हैं, उसकी कल्पना भी हम और आप नहीं कर सकते. 5 सेकंड के फ्यूज़न में ऐसा क्या हुआ, जो सारेरिसर्चरफूलकर कुप्पा हुए जा रहे. उम्मीद बढ़ गई है कि दुनिया भर की ऊर्जा जरूरतें पूरी हो सकती हैं.
इसी प्रोसेस को कहते हैं एटोमिक फ्यूज़न. फ्यूजन एक किस्म की वेल्डिंग प्रक्रिया है, जिसका उपयोग दो थर्मोप्लास्टिक टुकड़ों को एक साथ जोड़ने के लिए किया जाता है. इस प्रक्रिया को ऊष्मा संलयन या हीट फ्यूजन भी कहा जा सकता है. अब ये तो हुई विज्ञान में फ्यूजन की परिभाषा. अब वापस आते हैं अपनी स्टोरी पर.
इंग्लैंड के वैज्ञानिकों का दावा
आज से कुछ सौ साल पहले वैज्ञानिकों को पता चला की सूर्य की असीमित ऊर्जा का असल कारण है उसके अंदर होने वाला फ्यूज़न. इस फ्यूज़न को नाम दिया गया न्यूक्लियर रिएक्शन. अब सूरज की रोशनी अभी भी हमारे लिए एक रहस्य ही है. मतलब सच कहें, तो ज्यादा कुछ पता ही नहीं. लेकिन ये तो सभी को पता है कि वो ऊर्जा का बहुत बड़ा भंडार है. सूरज के इसी फ्यूज़न को धरती पर कराने के प्रयास भी सालों से हो रहे हैं. पिछले पचास सालों से तो दावे भी जमकर हुए. कहा गया कि बस अगला दशक और हम अपने लक्ष्य पर होंगे. खैर दशक से लेकर सदी बीत गई. हुआ गया कुछ नहीं.
फिर आई इस साल की फरवरी. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि वो पांच सेकेंड तक ऐसा करने में कामयाब हुए हैं. आपको लगेगा कि बात तो दो परमाणुओं को जोड़कर द्रव्यमान घटाने और अतिरिक्त ऊर्जा निकालने की है. तो फिर इतना देर क्यों लगी? देखने में ये बहुत आसान लगेगा, लेकिन असल में है नहीं.
अभी जो न्यूक्लियर ऊर्जा पैदा करने की प्रोसेस है वो इसके उलट है. मौजूदा न्यूक्लियर पावर प्लांट परमाणुओं को जोड़कर नहीं बल्कि परमाणुओं को अलग-अलग करके ऊर्जा पैदा करते हैं. इसलिए इंग्लैंड के वैज्ञानिक जो कर पाए, भले 5 सेकंड के लिए सही वो आने वाली ऊर्जा जरूरतों का ब्राइट फ्यूचर हो सकता है. न्यूक्लियर पावर प्लांट में विखंडन कराना फ्यूजन के मुकाबले आसान है. इसकी ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सकता है. इसके उलट फ्यूज़न के साथ सबसे बड़ी चुनौती है इस प्रक्रिया को चलाए रखना.
1920 में शुरू हुई कहानी
अब इतना जान लिया, तो ये भी जान लीजिए की फ्यूज़न की कहानी कहां से स्टार्ट हुई. 1920 के दशक के शुरुआती सालों में ये बात सामने आई कि तारे अपनी ऊर्जा कैसे पैदा करते हैं. आर्थर एडिंगटन ने बताया कि सूर्य के अंदर हाइड्रोजन परमाणु इस रफ़्तार से टकराते हैं कि वो आपस में जुड़कर एक नए तत्व हीलियम के परमाणु बना देते हैं. इसके एक दशक के बाद ब्रिटेन के वैज्ञानिक अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने सूर्य के अंदर होने वाले रिएक्शन को एक प्रयोगशाला में आजमाया. उन्होंने इसके लिए हाइड्रोजन के दो अलग किस्म के परमाणुओं ट्रिटियम और ड्यूटेरियम का इस्तेमाल किया.
इस बीच दक्षिणी फ्रांस में दुनिया का पहला न्यूक्लियर फ्यूज़न पावर स्टेशन बनाने की परियोजना पर काम जारी है. इसे नाम दिया गया है इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर. तीस से ज़्यादा देश अब तक इसमें करीब 20 अरब यूरो लगा चुके हैं. ये पहली परियोजना है जिसके ये साबित होगा कि एक रिएक्टर में आप न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए जितनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं, उससे कहीं ज़्यादा हासिल करते हैं.
उम्मीद की जा रही है कि बाहर निकलने वाली ऊर्जा की मात्रा 10 गुना होगी. हालांकि, अगर हम 10 गुना या उससे ज़्यादा ऊर्जा हासिल करना चाहते हैं तो ज़रूरी है कि प्रक्रिया चलती रहे. इसके लिए हमें कुछ ऊर्जा वापस डालनी होगी. ब्रिटेन में हाल में हुए प्रयोग में फ्यूज़न सिर्फ़ पांच सेकेंड तक हुआ. वहां जितनी ऊर्जा इस्तेमाल की गई, उसकी दो तिहाई ही बाहर आई. हम रिएक्टर बनाने में क्या इस्तेमाल करते हैं, इसी से ये भी तय होता है कि इसके अंदर की गर्मी कैसे बनी रहेगी. लगता है कि आधुनिक तकनीक इन दिक़्क़तों को दूर करने के काफी करीब है, लेकिन हमें याद रखना होगा कि फ्रांस का रिएक्टर अभी पूरी तरह तैयार नहीं हुआ है. लेकिन उम्मीद जरूर बंधी है.