हींग का इतिहास: भारत में दुनिया की 40% खपत होने के बाद भी हींग की खेती क्यों नहीं की जाती?

हींग का इतिहास: भारत में दुनिया की 40% खपत होने के बाद भी हींग की खेती क्यों नहीं की जाती?

हल्दी, धनिया, मिर्च की तरह हींगभारत की हर रसोई में मिल ही जाती है. इसकी थोड़ी सी मात्रा खाने का स्वाद बदल देती है. वहीं यह पाचक जैसे दूसरे कई अन्य फ़ायदों के लिए भी जानी जाती है. कहते हैं कोई इसकी गंध पसंद करे ना करें, इसकी खूबियों के कारण इसका सेवन करने से पहरेज़ नहीं करता. ऐसे में देश के किसी भी हिस्से मेंहींग की खेती का न होना बड़ा सवाल खड़ा करता है. आखिर ऐसी कौन सी वजह है कि 21वीं सदी का भारत हींग के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. अचानक से हींग की चर्चा इसलिए, क्योंकि देश में पहली बार हींग की खेती शुरू हुई है.

भारत में हींग कैसे और कहां से पहुंची इसका कही कोई सटीक जवाब नहीं मिलता. कुछ लोगों के अनुसार हींग मुग़ल काल के दौरान ईरान से भारत पहुंची. वहीं एक तर्क यह है कि कुछ जनजातियां ईरान से भारत आते समय इन्हें अपने साथ लेकर आईं. धीरे-धीरे हींग भारतीय खान-पान की आदत में आ गई और यहां की हो गई. आयुर्वेद में चरक संहिता में ही हींग का ज़िक्र मिलाता है.इसके आधार पर कुछ लोग कहते हैं कि हींग का इस्तेमाल भारत में कई ईसा पूर्व हो रहा है. सच्चाई जो भी हो. लेकिन इसमें दो राय नहीं हींग के बिना हींग के भारतीयों की रसोई अधूरी है.

भारत दुनिया का सबसे बड़ा हींग आयातक
भारत में हींग की कितनी मांग है. इसको इसी से समझा जा सकता है कि दुनिया में तैयार होने वाले हींग की 40 से 50 फीसदी खपत अकेला भारत करता है. देश के लोगों की रसोई तक पहुंचाने के लिए अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान से सालाना करीब 1200 टन कच्ची हींग खरीदी जाती है. ईरान और अफगानिस्तान की पहाड़ियों के बीच सबसे ज्यादा हींग पाई जाती है. यहां पहाड़ी इलाकों में हींग का पौधा पाया जाता है. एक अनुमान के मुताबिक भारत हर साल करीब 600 करोड़ रुपए की हींग का आयात करता है, जोकि एक बड़ी रकम है.
भारत में हींग की खेती संभव क्यों नहीं हुई?

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