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दांडपट्टा: वो स्वदेशी घातक हथियार जो मराठा योद्धाओं की ताकत बना, शिवाजी महाराज को भी था प्रिय

Editor Editor
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भारत हमेशा से शूरवीरों की धरती रही है. एक से एक योद्धा जन्म दिए हैं इस देश की मिट्टी ने. जीतने योद्धा उतने ही हथियार बने हैं इस देश में. आज भले ही बम और मिसाइल के दम पर किसी सेना की ताकत आंकी जाती हो लेकिन पहले के जमाने में वही सेना ताकतवर मानी जाती थीजिसके पास अस्त्र शस्त्र चलाने में माहिर योद्धा होते थे.

योद्धाओं को क्षमता से अधिक ताकतवर बनाने वाला एक ऐसा ही हथियार था दांडपट्टा, जिसे अंग्रेजी में गौंटलेट-तलवार भी कहा गया. ये हथियार किसी समय में मराठा योद्धाओं का पसंदीदा हुआ करता था. वैसे तो ये एक तरह की तलवार ही है लेकिन अन्य तलवारों के मुकाबले इसकी तेजी बेहद ज्यादा होती है.
क्या था दांडपट्टा?

वैसे तो दांडपट्टा नामक ये घातक हथियार मुगलों समेत अनुय राजाओं के पास भी था लेकिन इस पर जितना नियंत्रण मराठा योद्धाओं का था उतना किसी का भी नहीं. मराठा योद्धाओं के पास इस शस्त्र को चलाने का बहुत अनुभव था, यही वजह थी कि वह इसमें बहुत कुशल थे. इस तलवार की ब्लेड आम तलवारों से ज्यादा लंबी और लचीली होती है जिसे मोड़ना बहुत ही कौशल का काम है. बहुत अधिक कौशल और अभ्यास वाला व्यक्ति ही इस ब्लेड को ठीक से मोड़ सकता है.
धारकारी से कुशल पट्टेकरी

पट्टा शब्द का मतलब ही कौशल होता है. मराठी भाषा में पटाइत शब्द का उपयोग होता है, जिसका मतलब है कौशल. पट्टा चलाने में जो भी माहिर होते हैं उन्हें कुशल कहा जाता है. पट्टा चलाने में कुशल लोगों की प्रशंसा के लिए मराठी में एक कहावत कही जाती है. उससे पहले आप मराठी की एक अन्य कहावत के बारे में जानिए. मराठी में ‘धारकरी’ उस व्यक्ति को कहा जाता है जो तलवार, भाला, धनुष और तीर या कुछ अन्य 4-5 हथियारों को चलाने में निपुण होता है. वहीं एक पट्टा चलाने में कुशल व्यक्ति के लिए कहा जाता है कि ‘एक पट्टेकरी यानी पट्टा चलाने वाला व्यक्ति को दस धारकरी के बराबर माना जाता है.

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दांडपट्टा की बनावट
बता दें कि दांडपट्टा में पट्टे की लंबाई 5 फीट तक होती है, जिसमें इसकी ब्लेड 4 फीट तक लंबी होती है. इसके अलावा इसमें एक हैंडल लगा होता है जो 1 फीट लंबा होता है. इसका ब्लेड लचीला होता है, लेकिन लचीला होने के बावजूद ये काफी तेज होता है. इस तलवार को एक और चीज बेहद खास बनाती है और वो है इसका हैंडल. आम तलवारों में जहां हैंडल की तरफ हाथ बिना ढके होते हैं वहीं इसका हैडल पूरी से ढका हुआ होता है. इससे दुश्मन के वार से हाथ पर हमला होने का खतरा नहीं रहता.

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दांडपट्टा की ब्लेड लचीली होने के बावजूद हमला करने में अधिक सक्षम इसलिए होती है क्योंकि जब इस तलवार को घुमाया जाता है तो पूरी ताकत कलाई से लगती है लेकिन वास्तव में जब इसे मोड़ा जाता है तो इसे पूरे हाथ, कंधों और पंखों की मजबूती मिलती है.

शिवाजी महाराज का प्रिय हथियार
ऐतिहासिक ग्रंथों या दस्तावेजों में भी दांडपट्टा के उपयोग का वर्णन किया गया है. माना जाता है कि जीवा महले ने दंडपट्टा का इस्तेमाल सैय्यद को मारने के लिए किया था और बाजीप्रभु देशपांडे ने पावनखिंड में लूटपाट को रोकने के लिए दांडपट्टा का इस्तेमाल किया था.

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बता दें कि इस घातक तलवार को मुगल काल के दौरान बनाया गया था. इसका अधिकतम प्रयोग 17वीं तथा 18वीं शताब्दी के दौरान हुए युद्धों में किया गया था. इस हथियार को भारी बख्तरबंद घुड़सवार सेना के खिलाफ पैदल सैनिकों के लिए एक अत्यधिक प्रभावी हथियार माना जाता था.

मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके सेनापति बाजी प्रभु देशपांडे को पाटा के उपयोग में प्रतिष्ठित रूप से प्रशिक्षित किया गया था. जब मुगल अफजल खान के अंगरक्षक बड़ा सैयद ने प्रतापगढ़ की लड़ाई में शिवाजी पर तलवारों से हमला किया, तो शिवाजी के अंगरक्षक जीवा महल ने उन्हें बुरी तरह से मारा, जिससे बड़ा सैय्यद का एक हाथ पाटा से कट गया.

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