महाराणा प्रताप के लिए गाड़िया लोहारों ने छोड़ दिया था घर, दीया न जलाने, खाट पर न सोने की खाई थी कसम, नेहरू ने बसाने का किया प्रयास तो मिला ये जवाब

राजस्थान की घुमंतू जनजाति गाड़िया लोहार को उनके अनोखे और कठोर प्रण के लिए जाना जाता है। इस समुदाय का संबंध कभी राजस्थान की शाही भूमि से था। देश की राजधानी दिल्ली में गाड़िया लोहारों की कई बस्तियां हैं। ऐतिहासिक रूप से एक खानाबदोश जनजाति के रूप में चर्चित गाड़िया लोहारों ने राजस्थान के चित्तौड़गढ़ का किला छोड़ने के बाद भीषण यात्रा की है।
क्यों छोड़ा चित्तौड़गढ़ का किला?
किंवदंती है कि गाड़िया लोहार 16वीं शताब्दी के आसपास चित्तौड़गढ़ के राजा महाराणा प्रताप की सेना में लोहार का काम करते थे। लोहा से हथियार बनाने में माहीर गाड़िया लोहार शानदार कारीगर माने जाते थे। वे राजा की सेना के लिए ढाल, तलवार और अन्य हथियार बनाया करते थे। जब मुगलों के आक्रमण के बाद महाराणा प्रताप किला छोड़ने को मजबूर हुए, तो गाड़िया लोहारों भी उनके साथ निकल गए। उनका मानना था कि जब राजा ही जंगल में रहेंगे, वह चित्तौड़ में रहकर क्या करेंगे।
अनोखी शपथ
महाराणा प्रताप के चित्तौड़गढ़ छोड़ते हुए गाड़िया लोहारों ने भी कसम खाई कि वह तब तक वहां नहीं लौटेंगे, जब तक राजा या उनका वंश का शासन पुनः स्थापित नहीं हो जाता। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि समुदाय ने घुमंतू जीवन शुरू करने से पहले अपने लिए पांच नियम तय किया था:
1. कभी चितौड़ के किला पर नहीं जाएंगे।
2. बस्ती या जंगल में कहीं भी पक्का घर नहीं बनाएंगे।