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ऐसी 5 कहानियां जब साधारण समझकर अपमानित हुए लोग, फिर लिया ऐसा शानदार बदला कि दुनिया ने किया सलाम

Editor Editor
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1. सेल्समैन ने किसान को भगाया, कुछ ही देर में किसान लाखों ले आया
कर्नाटक के तुमकुर के किसान केंपेगौड़ा आरएल जब कर्नाटक के एक शोरूम में अपने दोस्त के साथ गाड़ी खरीदने पहुंचे तो यहां के एक सेल्समैन ने उन्हें गरीब समझकर भगा दिया. हैरानी की बात तो ये रही कि मात्र 30 मिनट के अंदर वह किसान 10 लाख कैश लेकर महिंद्रा शोरूम पहुंचा गया.

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10 लाख के कैश के साथ किसान को देखकर सेल्समैन हैरान रह गया था. उसने अगले चार दिन के अंदर गाड़ी डिलीवरी करने का वादा किया. हालांकि छुट्टियां पड़ने के कारण वादा पूरा नहीं हुआ और किसान को समय से गाड़ी नहीं मिली. ऐसे में किसान ने पुलिस से शिकायत की. मामला सोशल मीडिया पर आने के बाद महिंद्रा एंड महिंद्रा के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने इस पर प्रतिक्रिया दी. जिसके बाद किसान को गाड़ी मिल गई. इस मामले ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा था.

2. जमशेदजी टाटा का बदला ‘ताज होटल’
आज दुनिया भर के यात्रियों के बीच अपनी खास पहचान बनाने वाला ये ताज होटल ब्रांड एक अपमान का बदला लेने के लिए बनाया गया था. टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा ने ताज का पहला होटल 1903 में बनवाया था.

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बात उस समय की है जब जमशेदजी टाटा ब्रिटेन गए थे. यहां उन्हें उनके एक विदेश एक मित्र ने एक होटल में मिलने बुलाया था. टाटा ग्रुप की वेबसाइट के अनुसार जब जमशेदजी अपने मित्र के साथ उस होटल में पहुंचे तो मैनेजर ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया. मैनेजर का कहना था कि हम भारतीयों को अंदर आने की इजाज़त नहीं देते. भारतीयों का अंदर आना मना है.

जमशेदजी टाटा को यह केवल खुद का नहीं बल्कि पूरे भारत का अपमान लगा. वह इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह एक ऐसे होटल का निर्माण करेंगे, जहां भारत ही नहीं, बल्कि विदेशी भी आकर रह सकेंगे, वो भी बिना रोक-टोक के. वो एक ऐसे होटल का निर्माण करेंगे, जो पूरी दुनिया में आकर्षण का केंद्र बनेगा.

ब्रिटेन से मुंबई आने के बाद उन्होंने मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया के सामने पहले ताज होटल का निर्माण कार्य शुरू कर दिया. ये होटल समुद्र के बिल्कुल सामने बना. जिस ब्रिटिश होटल से जमशेदजी टाटा को भारतीय होने की वजह से निकाल गया था आज उस देश के लोग जब भी भारत आते हैं तो ज़्यादातर ताज में ही रुकना पसंद करते हैं.

3. रतन टाटा का फोर्ड से बदला
यह 1998 की बात है जब रतन टाटा ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के फेल होने पर टाटा ग्रुप के अन्य मेंबर्स ने सलाह मान कर डेट्रॉयट पहुंचे थे. लेकिन यहां उन्हें अपमान सहना पड़ा क्योंकि फोर्ड के ऑफिसर्स के साथ रतन टाटा और अन्य टॉप ऑफिसर्स की बैठक में फोर्ड द्वारा कहा गया कि “जब आपको इस बारे में कुछ पता ही नहीं था, तो आपने पैसेंजर व्हीकल सेगमेंट में कदम रखा ही क्यों ?” फोर्ड यहीं नहीं रुका बल्कि उसने आगे कहा कि वे टाटा मोटर्स के कार बिजनस को खरीद तो रहे हैं लेकिन ये उनके ऊपर फोर्ड का अहसान होगा.

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फोर्ड का ये रवैया रतन टाटा को बिलकुल पसंद नहीं आया. वह अपमान का घूंट पी कर रह गए तथा इस डील को बीच में ही छोड़ कर अपनी टीम के साथ उसी शाम न्यू यॉर्क लौट आए. इस घटना ने रतन टाटा को बेहद उदास कर दिया लेकिन रतन टाटा औरों से अलग थे. उन्होंने बदले की भावना में समय गंवाने से ज्यादा जरूरी समझा अपनी कमियों को सुधारना. उन्होंने अपने कार सेगमेंट को बेचने का विचार बदल दिया और अब अपना पूरा ध्यान अपने कार बिजनेस में लगाने लगे. धीरे धीरे उनकी मेहनत रंग दिखाने लगी.

कहते हैं समय पहिये के समान घूमता है और इस तरह वह खुद को दोहराता रहता है. रतन टाटा की मेहनत ने टाटा मोटर्स को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया. एक तरफ टाटा ग्रुप की टाटा मोटर्स कामयाब हो रही थी तो वहीं 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान फोर्ड कंपनी दिवालियापन की स्थिति में आ गई. तब टाटा मोटर्स ने फोर्ड से जैगवार तथा लैंड-रोवर ब्रैंड (जेएलआर ब्रैंड) को 2.3 अरब डॉलर में खरीद लिया. टाटा मोटर्स की फोर्ड के साथ ये डील उनके लिए जीवानदायिनी सौदा साबित हुई. टाटा मोटर्स की इस उदारता पर फोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन बिल बोर्ड ने टाटा को धन्यवाद देते हुए कहा था कि ‘आप जेएलआर को खरीदकर हम पर बड़ा अहसान कर रहे हैं.’ उनकी इस बात पर खूब तालियां बजी थीं.

4. एक किसान के बेटे ने फेरारी से लिया अपमान का बदला
फारुशियो लेम्बोर्गिनी एक किसान के बेटे थे. उन्होंने वर्ल्ड वार 2 में भाग लेने के बाद एक ट्रैक्‍टर्स मैन्‍युफैक्‍चरिंग की कंपनी शुरू कर की. फारुशियो हमेशा से स्पोर्ट्स कारों और रेसिंग के दीवाने थे.1958 में उन्होंने टू सीटर कूपे फरारी 250 जीटी खरीदी. फारुशियो को इस कार में कुछ खामियां दिखीं. उन्होंने ने सोचा कि क्यों ना इसे कंपनी को बताया जाए जिससे कि वो अपनी गाड़ियों में सुधार कर सके. फारुशियो ने ऐसा किया भी. लेकिन फरारी 1960 के दशक में सबसे शानदार स्पोर्ट्स कार बनाने वाली चंद कंपनियों में से एक थी.

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उसका बड़ा नाम था और अपने इसी नाम पर उन्हें घमंड भी था. इसी घमंड के कारण उन्होंने युवा टैक्‍टर मैकेनि‍क फारुशियो की बात को ना केवल नजरअंदाज किया बल्कि उनका अपमान करते हुए कहा कि “दिक्कत गाड़ी में नहीं उसे चलाने वाले ड्राइवर में है. गाड़ियों में ध्यान देने से अच्छा है तुम अपने ट्रैक्‍टर बि‍जनेस पर ध्‍यान दो.” अपने जवाब से फरारी ने ये जताया कि फारुशियो को कार के बारे में कोई जानकारी नहीं है और उनकी कार बेस्ट है.

फारुशियो को फरारी की बात बिलकुल ना पसंद आई, उनके मन पर ठेस पहुंची. इसी ठेस ने उनके दिमाग में एक नई सोच को जन्म दिया. उन्हें समझ आ गया कि अब कारों में अपनी इस रुचि को उन्हें अपने व्यवसाय में बदलना है और ऐसी गाड़ियां तैयार करनी हैं जो फरारी को टक्कर दे सके. इसके तुरंत बाद ही फारुशियो ने नई कार के डिज़ाइन पर काम शुरू कर दिया. 4 महीने की मेहनत के बाद उन्होंने अक्टूबर 1963 में हुए टूरिन मोटर शो में अपनी लेम्बोर्गिनी 350 जीटीवी उतार दी. उनकी इस नई कार ने स्पोर्ट्स कार के दीवानों को खूब आकर्षित किया और इस तरह फारुशियो लेम्बोर्गिनी ने अपनी सफलता की नींव रख ली.

1963 में टूरिन मोटर शो में मिली सफलता के बाद फारुशियो लेम्बोर्गिनी ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. 1964 में इनकी कार 350 जीटी ने मार्केट में कदम रखा तथा अपार सफलता प्राप्त की. इस नई कार के साथ ही फारुशियो लेम्बोर्गिनी ने फरारी को टक्कर दे दी थी क्योंकि उनकी कार का दाम भी फरारी की कीमत के बराबर था.

5.महाराजा जयसिंह का रोल्स रॉयस से बदला
जयपुर के महाराजा जयसिंह एक बार लंदन गए. वह अपने भारतीय परिधान में थे. ऐसे में वाद इस खूबसूरत शहर का दौरआ कर रहे थे. तभी उनकी नजर एक शोरूम में रखी रोल्स रॉयस कारों पर पड़ी. उन्हें कारें पसंद आई तो उन्होंने शोरूम के अंदर जा इन्हें देखने का सोचा. वह इन कारों के बारे में कुछ जानना चाहते थे. उन्होंने फैसला किया कि वह इन कारों के नए मॉडल को खरीद लेंगे. यही सोच कर उन्होंने शोरूम में प्रवेश करना चाहा लेकिन शोरूम वालों ने उनके पहरावे को देखकर समझा कि वह कोई भिखारी हैं. इसके बाद उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया गया.

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महाराजा ने इस घटना के बाद खुद को बहुत अपमानित महसूस किया. उसी समय उन्होंने फैसला कर लिया कि वह 7 रोल्स रॉयस कारें खरीदेंगे. उन्होंने भारत लौट कर ये कारें खरीद भी लीं. जब ये कारें जहाज से भारत पहुंचीं तो राजा जयसिंह ने इन कारों को अपनी नगर पालिका को सौंप दिया और उन्हें आदेश दिया कि इन कारों में कचरा ढोया जाए. इस तरह राजा जयसिंह ने लंदन के शोरूम में हुए अपने अपमान का बदला लिया. उन्होंने नगर पालिका कर्मियों से कहा कि इन कारों का इस्तेमाल कूड़ा इकट्ठा करने वाली गाड़ियों के तौर पर किया जाए. ये एक रोल्स रॉयस कूड़े के पास खड़ी है. कहते हैं ये इतनी बड़ी घटना थी कि इसकी खबर पूरी दुनिया में फैल गई और इससे रोल्स रॉयस की इमेज को तगड़ा झटका लगा.

इसके बाद कंपनी ने तुरंत महाराजा के महल में टेलीग्राम के जरिए एक माफीनामा भेजा. साथ ही कंपनी ने उन्हें 07 रोल्स रॉयस कारें मुफ्त में देने का ऑफर दिया. कंपनी ने कहा कि जो कुछ हुआ है, वैसा दोबारा कभी नहीं होगा. तब महाराजा ने वो कारें कूड़ा एकत्र करने के काम से हटवा लीं.

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